Monday 30 May 2011

अशोक आंद्रे

दूसरी मात

दिन की आँख खुलने से पहले ही चिड़ियों की चहचहाहट ने रतन की नींद को पूरी तरह से उचाट दिया था. कुनमुनाते हुए रजाई को एक तरफ धकेल, अंगड़ाई से शरीर
में फुर्ती का एहसास महसूसा था रतन ने. रात्री का टुकड़ा भर अँधेरा अभी भी कमरे की कैद से छूट
नहीं पाया था. चारों तरफ निगाह दौडाते हुए रतन ने अपने को एक बार फिर नितांत अकेला पाया
मन को कहीं अतीत के सहारे और वर्तमान को आँखों में सहेजे उसने जैसे ही दरवाजे के कपार खोल
बाहर के वातावरण को सूंघना चाहा, हवा का सर्द झोंका पूरे कमरे में आतंक फैला गया.
हुं ! यह भीकोई जिन्दगी है, पूरे मौसम को कोसते रहो एक कप चाय की इन्तजार में.अपने पड़ोसी
रामलाल को देखो जिसकी पत्नी आँख खुलने से पहले चाय के साथ मान- मनुहार करती हुई उसे दिनके उजाले काएहसास कराती है." समय बिताने का कितना अच्छा तरीका है स्वयंसे बातें
करनाऔर उन बातों का जिनका न आदि हो और न अंत. दुमुंही की तरह. चाहे जिधर से पकड़ लो चाहे जिधर पहुँच लो.
काफी समय बीत चूका था. रतन सन्यासी की सी लीं मुद्रा में बैठा रहा.
रजाई से हाथ निकाल धीरे से तकिये के नीचे, रतन का हाथ कुछ टटोलने लगा. घड़ी के रेडियम
के सहारे दो सलाइयों के बीच समय को मापने की कोशिश की. वक्त साढ़े पांच का ही था.
चाय की तलब एक बार फिर नन्हे खरगोश की तरह रतन के भीतर
कुलांचे भरने लगी . न चाह कर भी उठना पड़ा उसे. सर्दी में उठकर चाय बनाने का खौफ उसके मुंह
का स्वाद कसैला कर गया. अन्दर का आक्रोश गर्म लावे की तरह फूटने लगा.
तभी एक बारीक चीख ठंडे मौसम को आहत करती हुई उसकी रजाई पर
छा जाती है. पड़ोसी रामलाल कंठ - फोडू स्वर में चीख रहा था-" तू औरत नहीं....सूखी बावडी
है, तभी तो...."
कुछ प्रतिवाद किया था नारी कंठ ने. रामलाल की गर्जना पुन: उभरी थी -
"नंदी क्या असत्य बोलेगा ?"
रजाई को अपने चारों ओर कसते हुए रतन ने सोचा क्या बाँझपन केवल नारी का ही दोष हो सकता है. दोष रामलाल में भी तो हो सकता है. आज आदमी
ब्रहम्मांड को छूने लगा है. जबकि आम हिन्दुस्तानी अभी भी सारा दोष औरत पर मढ़ कर ही
चैन की नींद सोने की कल्पना संजोये अपनी मर्दानगी बखानता रहता है.
रतन को याद आया कि हाल ही में रामलाल के घर के सामने एक
आदमी बैल के साथ खडा लोगों के भविष्य को बता रहा था.और उसका दावा था कि कोई भी
आदमी, बैल द्वारा बताए गए भविष्य को चुनौती नहीं दे सकता. वह भविष्यवाणी को गलत साबित करने वाले को एक हजार का इनाम देगा.
उसकी इस बात ने लोगों के दिल पर काफी गहरा असर किया था.
उसी भीड़ के बीच खड़े रामलाल ने भी अपना सवाल उस बैल के
सामने रखा था. बैल ने सवाल सुन कर अपना सिर नकारात्मक मुद्रा में हिला दिया था. रामलाल
सन्नाटे में आ गया था. तभी तो रामलाल इस वक्त अपनी पत्नी को इस कदर दुत्कार कर
उसे 'सूखी बावड़ी' कह रहा था.

बैल वाला शहर के बाएं कोने में अपनी एक जवान लडकी के साथ रहता था. परिवार के नाम पर सिर्फ यही लडकी थी. जिसे पत्नी ने मरते वक्त इकलौती धरोहर
के रूप में उसके पास छोड़ा था. पत्नी की मौत ने उसे बुरी तरह से तोड़ कर उसके पूरे अस्तित्व
को टुकड़ों-टुकड़ों में विभाजित कर दिया था.
मौत से कुछ दिन पहले उसकी पत्नी ने एक दिन नंदी से
पूछा था चुपके से,अपनी जिन्दगी की चुकती सांसो के बारे में. लम्बी बीमारीनेउसके शरीर
को पुराने खंडहरों में तब्दील कर दियाथा. शरीर का आधा हिस्सा लकवे का शिकार हो
गया था.
बैल वाले को पूरी उम्मीद थी कि उसकी पत्नी जरूरत
वैद्यजी के द्वारा दी गयी जड़ी- बूटी से पूर्ण स्वस्थ हो जाएगी . और फिर .... उसका घर.....
एक दिन ...हरी बगिया की तरह महकने लगेगा. लेकिन ....नंदी की बात को झुठला नहीं
पाया था तब. और समय अपनी रफ्तार बढाता हुआ कब खिसक गया. पता ही न चला .

कभी नंदी की पूंछ से खेलती नंगे पांव चलती उसकी बेटी
भी साथ होती थी. बेटी के बड़े हो जाने पर वह अब नंदी के साथ अकेला जाता है.
लडकी को अगर साथ ले चले तो लोग अपने भविष्य और
भाग्य से ज्यादा लडकी में रुची लेने लगेंगे, यह वह जानता है.
शाम अक्सर बौराए मन की तरह उसके खाली समय में
तरंगित हो उठती, जब वह भांग का अंटा चढ़ा लेता था. तब उसकी मस्ती उसके स्व को छूती
हुई आसपास के पूरे माहौल को जिन्दादिली का एहसास कराती. कई बार वहां से गुजरते हुए
रतन ने स्वयं अपनी आँखों से यह देखा तथा महसूसा था.
इस बैल को वह अपने सगे लड़के की तरह प्यार उसका
पूरा विश्वास था कि उसका बैल उसी नंदी का अवतार है जिसकी जिह्वा पर ब्रह्मा का वास था.
इसीलिए उसने इसका नाम नंदी रख छोड़ा था.
खाली समय में कई बार अपनी जवान हो आई बेटी का
भविष्य इसी बैल से बचवाता था. पूरा विश्वास था उसे कि उसकी बेटी का विवाह किसी राजकुमार से होगा. जब-जब इस सवाल को उसने कागज के चंद टुकड़ों के सहारे बैल के
पैरों की तरफ उछाला , उसने हर बार राजकुमार वाले कागज़ को ही अपने खुर से दबाकर उसके
विश्वास को पुख्ता किया था.

**********

काफी समय बीत गया था बस स्टाप पर खड़े हुए. घड़ी
देखी. करीब एक घंटा गुजर चुका था. दूर-दूर तक बस के आने के निशाँ तक सड़क पर से गायब
थे. 'कहीं बस की स्ट्राइक तो नहीं हो गयी है.' उसने अपने आप से पूछा .
दिल्ली जैसे महानगर में इस तरह की घटनाएँ बिना पूर्व
सूचना के अक्सर घट जाया करती हैं.
आसमान पर छितराए बादल इकठ्ठा होने लगे थे. आज दिनभर गर्मी भी काफी रही. कल ही तो टी.वी. पर हिंदी समाचार के अंत में कहा गया था कि
कल आंधी के साथ गरजकर छींटे पड़ने की संभावना है.
खैर ! आंधी के आसार तो नजर नहीं आ रहे थे. लेकिन
बारिश के आसार जरूर नजर आ रहे थे.
बस स्टाप पर कुल तीन सवारियां ही बस का इन्तजार
कर रही थीं अब. महिला सवारी बार-बार घड़ी देखती तथा माथे पर तिर आए पसीने को दूसरे हाथ
में पकड़े रूमाल से पोंछने का प्रयास करती. वह शायद आज पहली बस पकड़ने से वंचित रह गयी
लगती थीं. उस महिला के स्थान पर रामलाल की पत्नी का स्वरूप प्रतिबिंबित होकर उभरने लगा
था. न चाह कर भी उस दिन की सुभह की घटना को भुला नहीं पा रहा था. पता नहीं क्यों नारी
ही हर बुरी स्थिति को भोगने के लिए अभिशप्त है.
कई बार नारी ही नारी की दुश्मन होती है. कई बार रामलाल
के पड़ोस में रहने वाली औरतों ने कटाक्ष किये थे. रामलाल उन व्यंग वाणों को सुनकर तिलमिला जाया करता था. उसी आक्रोश की प्रतिक्रिया ही तो थी उस दिन. दस महीने पहले सुने शब्द इस
वक्त उसके कानों में 'सूखी बावड़ी' बन कर गूँज रहे थे.
अब अन्धेरा काफी तिरने लग गया था. बस का अभी भी कुछ
अता-पता नहीं था.
चार किलोमीटर की दूरी पर ही तो घर है, रतन ने जैसे खुद को ललकारा और खरामा-खरामा चल पडा. थोड़ी दूर पैदल चलने पर उसे चने बेचने वाला दिखाई
दिया. एक रूपये के चने लेकर वह बढ चला.
अब हवा में काफी नमी थी. बादल काफी घिर आए थे.
लगा, बरसात जरूर होकर रहेगी.
दो- ढाई किलोमीटर चला होगा कि वर्षा टूट पडी.काफी
देर तक एक पेड़ के नीचे रुक कर वह बरसात थमने का इन्तजार करता रहा. लेकिन बरसात
थमने के आसार नजर नहीं आ रहे थे.
अब तक वह काफी भीग चुका था. पेड़ के नीचे और
रुके रहने का कोई औचित्य उसे नजर नहीं आया. वह एक बार फिर पैदल चलने का संकल्प
लेकर चल पड़ा .
बस्ती के करीब पहुंचने तक अन्धेरा काफी हो चला था.अब बरसात भी रुक-रुक कर हो रही थी. बस्ती की झुग्गियों में से धुआं रिसता भी दीख
रहा था. काफी भीड़ जमा थी. बाईं तरफ से दूसरे छोर की झुग्गी केबाहर जहां पुलिसवालों ने
झुग्गी को चारों ओर से घेर रखा था. हर आने वालों को पुलिस वाले सशंकित नजरों से देख
रहे थे. झुग्गी के अन्दर अँधेरा होने के कारण कुछ भी दिखाई नहीं दे पा रहा था.
- "यह तो उसी बैल वाले की झुग्गी है." उसने
अपने आप से सवाल किया.
वहीं एक कोने पर, वही बैल वाला आदमी दहाड़
मार-मार कर चीख रहा था. ठीक दूसरे कोने पर खूंटे से बंधा बैल खामोश निगाहों से अपने
बिलखते मालिक की तरफ देख रहा था.
"क्या हुआ भाई !" मैंने पास खड़े एक आदमी से
पूछा. होना क्या है बाबूजी ? गरीब आदमी की तो कोई इज्जत ही नहीं रही इस संसार में.
किसी का भला क्या बिगाड़ा था इस आदमी ने ? उसने बैल वाले की की इशारा करते हुए
कहा.
"मैं आपकी बात समझा नहीं," उसने बैल वाले की
तरफ देखते हुए कहा जो अब बदहवास सा आँखे फाड़े सबको देख रहा था.
......
उसने एक बार फिर उस आदमी की तरफ देखा
जिसने अस्पष्टता की तलहटी में फ़ेंक बुरी तरह उलझा दिया था उसे. आसमान में बादल जरुर
छितरा कर इधर-उधर फैल गए थे किन्तु रतन का सवाल अभी भी सुलझ नहीं पाया था.
उस भीड़ को ठेल, थोड़ी सी जगह बना कर झाँकने
की कोशिश की लेकिन भीड़ ने उसे फिर वापस उसी बिंदु पर पहुंचा दिया.
प्रस्थान बिंदु पर पहुंच कर, उसी आदमी को दोबारा
टटोलने की कोशिश की. बार-बार सवाल करने पर वह आदमी काफी झुंझला गया .
" जरा आगे बढ कर स्वयं ही देख लो. क्या हुआ है?"
"मेरा मतलब यह है कि.....आखिर हुआ क्या है?" किसी की इज्जत दिन दिहाड़े लुट जाए और
आप कहते हैं कि माजरा क्या है? इसकी जवान लडकी की दिन-दिहाड़े इज्जत ..... घृणा का
गाढ़ा सैलाब अब उसके चेहरे पर फैल गया था.
लगा, ठीक ही तो कह रहा है यह. मस्ती से भरे
शांत जीवन में कोई ज़हर घोल दे और सब चुपचाप देखते रहें. मन काफी उदास हो गया. बरसात
की फुहारों से भीगी ठंडी हवा आग के शोलों सी लग रही थी उसे अब.
उस आदमी का विश्वास तड़क कर पैरों में घाव करने
लग गया था. जिन्दगी भर जो दूसरों के भाग्य बताता रहा, आज स्वयं भाग्य रूपी भंवर में फँस
कर चारों खाने चित पड़ा कराह रहा था . सान्तवना का एक भी शब्द उसके लिए बेमतलब सा लग
रहा था उसे.
रतन ने देखा सामने से रामलाल तेजी से भागता चला आ रहा था. उसके चेहरे पर अद्भुत चमक तैर रही थी. मन आशंका से भर उठा उसे देख कर. उसने कहीं.....
पत्नी को...... जिज्ञासा को दबाते-दबाते भी पास आने पर, बांह पकड़ पूछ ही डाला था रतन ने-अरे ,
भाई रामलाल, क्या बात है?"
"भाई साहब , मैं जरा जल्दी में हूँ . अभी आकर
बताता हूँ. जरा दाई को लेने जा रहा हूँ." इतना कह कर वह तेजी से चला गया.
रतन अब नंदी को देखने लगा था. बैल खामोश
निगाहों से शुन्य में घूर रहा था. पता नहीं उन निगाहों में रामलाल की पत्नी के लिए 'हाँ' थी
या फिर न!
धीरे-धीरे सधे क़दमों से उसकी तरफ चला आया
था रतन. नंदी रुपी बैल ने एक बार उसको देखने के उपरान्त खिन्नता का बोध लिए नकारात्मक
मुद्रा में अपना सिर हिला दिया. शायद उसने रामलाल की बात सुन ली थी जिसे कभी उसने संतान
के सुख से वंचित रहने का संकेत दिया था और ....आज वह .....अपने मालिक की पुत्री की मौत
को भी पचा नहीं पा रहा था.
पता नहीं चूक कहां हुई थी. लेकिन रतन इन
सारी परिस्थियों को देख कर काफी असहज हो उठा था. जेब से सिगरेट का पैकेट निकाल उसने
एक सिगरेट सुलगाई थी. उसका धुंआ चारों तरफ फैले अँधेरे को और सघन कर रहा था. वहां
खड़ा रहना भी रतन के लिए असंभव प्रतीत हो रहा था. धरती और आसमान उसे घूमते नजर
आ रहे थे.
एक निग़ाह चारों तरफ डाल रतन अपने
घर की ओर चल दिया था जहां रामलाल के कमरे में नन्हा- सा जीवन चीख-चीख कर अपने
अस्तित्व का बोध करा कर नंदी को दूसरी मात दे रहा था.

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6 comments:

Anonymous said...

प्रिय आंद्रे जी ,
भाई सम्बोधन मन को भा गया ....धन्यवाद .

आपकी मेल पा कर खुशी हुई.
सच मुझे कहानी रोचक लगी.
शिल्प और शैली में उत्तरोत्तर आता निखार
कहानी में यत्र-तत्र बिखरे नए नए बिम्ब जैसे
..... कितना अच्छा तरीका है स्वयंसे बातें

करनाऔर उन बातों का जिनका न आदि हो और न अंत. दुमुंही की तरह.....
.......चाय की तलब एक बार फिर नन्हे खरगोश की तरह रतन के भीतर

कुलांचे भरने लगी.......
और कहानी के अंत में आशा की किरन कि .....
.....नन्हा- सा जीवन चीख-चीख कर अपने

अस्तित्व का बोध करा कर नंदी को दूसरी मात दे रहा था.
वाह ! खूबसूरत अंत
एक सुंदर सशक्त रचना के लिए बधाई
शुभ कामनाओं सहित
-इन्द्र

रूपसिंह चन्देल said...

भाई अशोक,

बहुत मार्मिक कहानी है. बैल (नंदी) के माध्यम से तुमने आज की विद्रूपता को उद्घाटित किया है. अंत भी अच्छा है. लेकिन इस अंत उस बच्ची की मृत्यु हावी है....

चन्देल

Anonymous said...

DOOSRI MAAT by Ashok Andre
Shri Ashok Andre is my friend for the past about 30 years. He is a gentleman by all counts. He is very sensitive and serious person. He has a soft heart and always looks into the pains and sufferings of the people who are hapless and wanting, and do not have even the bare minimum what a couple should have in life. He keeps on depicting the painful pictures of such people through short stories or short poems.
In ‘ Doosri Maat’ the author depicts the feelings of Rattan who is living alone and yearns for a cup of tea as he gets up in the morning. Then he feels envious of his neighbor Ram Lal whose wife wakes him and offers him a cup of tea. But Ram Lal shouts at his poor wife for waking him early. She is unfortunate as she could not bear a child despite Nandi”s (Nandi is the name of the animal which is the source of foretelling as well as source of livelihood) nodding the head in her favor. Ram Lal blames her for this shortcoming and does not realize that the fault may be in his health instead. He always humiliates her by calling her a fruitless tree or a dry spring. These poor people being unable to afford medical treatment and go to the road-side foretellers who depend on poor animals for the future telling.
The animal owner, a widower, lives in a remote and poor corner of the city with her only daughter. He always worries about the marriage of his daughter. He has all the hopes on Nandi as Nandi is his only hope and help. Nandi always nods his head foretelling the bright future of his daughter.
One day Rattan after waiting a lot of time for bus to his home sets forth on foot fearing the imminent rain and dark. Near to his living place the animal owner also lives in a small hutment. Rattan sees a mob gathered near the place of the animal owner. The animal owner is heard painfully crying over the rape of his daughter. The poor and hapless man wails over his bad luck and does not realize that this is the second defeat of Nandi.
The author has beautifully concluded this story and named it as ‘second defeat’ or ‘Doosri Maat’. First the animal could not foretell the future of Ram Lal’s wife who desired a child and secondly the animal failed to foretell the future of his daughter’s life . The theme of the story is very good. The author has condemned the superstition and depicted the two defeats and thus leaves a message for the society. I commend him and wish him success in life.
Dr Ajit Singh, Tanda, Hoshiarpur.
09417052646

Dr. Sudha Om Dhingra said...

दिल को छूने वाली कहानी | बधाई |

amrendra "amar" said...

बहुत ही सुंदर प्रभावी प्रस्तुति.

Kavita Rawat said...

bahut badiya marmsparshi prabhavsheel prastuti..