Monday 28 September 2009

अशोक आंद्रे

अस्तित्व

सूखी नदी जानना चाहती है
अपने अस्तित्व के बारे में ,
उसकी निगाहें आकाश की तरफ
झाँकती हैं
समय कुछ कहना चाहता है ,
इतिहास , उसके अतीत को पन्नो में दबाए
खामोश है
शब्द नहीं मिलते उसको ,
क्योंकि अतीत ठंडा होता है
शिलालेखों की तरह ,
क्या दे पाता है ?
सिवाय मानसिक तनाव के ।

समय फिर भी नदी की ऐतिहासिक परतों के
नीचे , दबी गुफाओं की खुदाई करता रहता है
ताकि नदी के खंडित होते अस्तित्व के होने न होने
के दस्तावेजों को निकाला जा सके
उधर विचारों के पाल थामें कई नावें
बह जाती हैं समय की धार में
पेड़ों के छाते थामे कई दृश्य
कालज़यी होने की चेष्टा करते
चिह्नत हो जाते हैं शिलालेखों की तरह
उसकी छाती पर ,
जबकि सूखी नदी के अस्तित्व के बारे में --
कौन जानना चाहता है ?

उसके अन्दर का लावा पपड़ी बनकर
शिलालेख होने का आभास तो देता है ,
और बताता है कि
कितनी जिंदगियाँ , उसके आर - पार हो चुकी हैं
नदी सब कुछ जानती है उन शिलालेखों के माध्यम से
अगर नहीं जानती तो सिर्फ अपने सूखे अस्तित्व के
बारे में ,
क्योंकि यहाँ उसकी सतह पर चित्रित्र शिलालेख
वीतरागी हो गये हैं ।

चाँद और मेरा बेटा

चाँद बहुत याद आते हो ।
रात्री के प्रथम पहर में जब
पहाडों के बीच फँस जाते थे तुम,
उस वक्त पास खडा मेरा बेटा
हंसने लगता था
'देखो मामा कहां फँस गये हैं '।
पहाड़ की चोटी को छूते
पेड़ों के पत्तों की सरसराहट
उसके पैरों में थिरकन पैदा करती थी ।

पता नहीं आज मेरा बेटा
कैसे उदास हो गया था
और जिक्र करने लगा तुम्हारा
क्योंकि उसके ज्योमेट्री बॉक्स में रखा
चाँद , जो खो गया था ।

टीचर के डर के कारण खोजने लगा था तुम्हें
आकाश कि ओर देखकर ।
आज तुम तो आए ही नहीं थे
उसे क्या मालुम आज अमावस्या है
और अंधेरे में तुम्हें डर जो लगता है
ठीक मेरे बेटे कि तरह ।

अंधेरे में कुछ दिखाई भी तो नहीं देता
अंधेरा उस वक्त शमशान कि तरह पसर जाता है
यह भी सच है कि
उस पसरने में भी शास्वत आनंद है
राग है जीवन का
जिसे मेरा बेटा समझ नहीं पाता है ।

चाँद तुम ठीक उसी जीवन के सत्य हो
जिसे याद करके बहुत खोता हूँ ,
मेरा बेटा तो भूल गया है सब कुछ
क्योंकि उसके ज्योमेट्री बॉक्स का चाँद जो खो गया है
उसी में उलझा वह
आकाश को कभी - कभार देखता जरुर है
क्योंकि उसकी उदासी में तुम्हारी खामोशी जो पसरी हुई है ।
लेकिन तुमसे एक विनती है
एक बार --
हाँ , सिर्फ एक बार उन ऊचें पहाडों के बीच फँस जाओ
चाहे मेरा बेटा हँसे न हँसे लेकिन मुस्कराए जरुर ।