शब्द
खोज करते शब्द
फिसल जाते हैं अकसर चादर ओढ़
तैरने की नाटकीय कोशिश करते
समय की लहरों पर
लहराते परों की लय पर
संघर्षों का इतिहास बाँधने लगते हैं सब
फिर कैसे डूबने लगते हैं शब्द ?
साहिल की दहलीज पर
उड़ेलते हुये भावों को
पास आती लहरों को
छूने की खातिर-
जब खोजने लगता है अंतर्मन
तह लगी वीरानियों में
क्षत-विक्षत शवों की
पहचान करते हुये,
मौन के आवर्त तभी
खड़खड़ाने लगते हैं जहाँ
साँसों के कोलाहल को
धकेलते हुये पाशर्व में
खोजता है तभी नये धरातल
चादर खींच शब्दों की
करता है जागृत
शायद शब्दों को अनंत स्वरूप देने के लिये
ताकि भूल होने से पहले
वर्तमान को भविष्य की ओर जाते हुये
नई दिशा मिल सके
शब्द को.
****
खोज करते शब्द
फिसल जाते हैं अकसर चादर ओढ़
तैरने की नाटकीय कोशिश करते
समय की लहरों पर
लहराते परों की लय पर
संघर्षों का इतिहास बाँधने लगते हैं सब
फिर कैसे डूबने लगते हैं शब्द ?
साहिल की दहलीज पर
उड़ेलते हुये भावों को
पास आती लहरों को
छूने की खातिर-
जब खोजने लगता है अंतर्मन
तह लगी वीरानियों में
क्षत-विक्षत शवों की
पहचान करते हुये,
मौन के आवर्त तभी
खड़खड़ाने लगते हैं जहाँ
साँसों के कोलाहल को
धकेलते हुये पाशर्व में
खोजता है तभी नये धरातल
चादर खींच शब्दों की
करता है जागृत
शायद शब्दों को अनंत स्वरूप देने के लिये
ताकि भूल होने से पहले
वर्तमान को भविष्य की ओर जाते हुये
नई दिशा मिल सके
शब्द को.
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5 comments:
सुंदर सृजन
आदरणीय अशोक जी,
आपकी कविता ' शब्द ' मैंने अभी पढ़ी।
यह अत्यंत मार्मिक, सारगर्भित और हृदयस्पर्शी है।
' शब्द संघर्षों का इतिहास बाँधने लगते हैं ' - - -
' साँसों के कोलाहल को धकेलते हुए ' - - - -
शब्दों की ताल पर थिरकते भाव बरबस ही मन मोह लेते हैं।
अति सुन्दर मनोहारी कविता।
कृपया हार्दिक बधाई और सराहना स्वीकार करें।
सादर,
कुसुम
शब्द लहरों पर उतने स्वाभाविक रूप से नहीं लहरा सकते जितने आपकी लेखनी पर लहराते हैं । शब्दों को चयन करने और एक सूत्र में उन्हें पिरोने की कला में आपका अनुभव इसे परिपक्वता प्रदान कर रहा है ।
काफी दिनों बाद आपको पढने का अवसर मिला. अत्यंत सारगर्भित एवं विचारपूर्ण रचना के लिए बधाई.
सार्थक और सुन्दर रचना।
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