समय, बहुत नचाया है तुमने
बहुत नचाया है समय, तुमने ।
हरे पत्तों से उठती रेशमी लहरों में,
तटों के आह्वान पर
समुद्र में उठे सफेद फेनिलों में,
पक्षियों के फैले परों तले
दोहर ओढ़े नाचा हूँ मेघों की लय पर,
हाँ, कितना नचाया है तुमने ।
कालभैरव का मुख कितना गहरा होता है,
ब्रह्म का मौन कितना गहन होता है,
विशवास डोलता है अपनी ही तरंगों पर
रात्री विस्तार पैदा करती है
दिन सिकोड़ देता है सब कुछ
समय और समय के मध्य,
कितना बिखराया है सर्वस्व,
ओ समय, कितना नचाया है तुमने ।
प्रार्थना के स्वर कहीं दूर झंकृत हो रहे हैं ,
नदी का जल कहीं डूब पैदा करता है.
भंवरें घेर लेती हैं अस्तित्व का सार
किसको भजूँ समाधि के पारावार में
सब कुछ उलट जाता है विस्तार में
क्योंकि , परछाइयों से ही तो प्यार किया है आज तक
इसीलिए तो नचाते रहे हो समय
मुझे मेरी ही धुरी पर लगातार ।
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8 comments:
प्रिय अशोक,
बहुत ही सुन्दर कविता . सच ही समय ने हम सभी को बहुत ही नचाया है.
बधाई.
चन्देल
भाई अशोक जी
वाह! बहुत खूब ! समय तो हम सबको नचाता है। विडम्बना तो यह है कि हम सब समय के हाथों की कठपुतलियाँ हैं और इसके हाथों नाचना हमारी नियति!
पुनश्च : वर्ड वैरीफिकेशन की बंदिश तुरन्त हटा दो, नहीं तो जो थोड़े बहुत पाठक कमेण्ट्स करते हैं, वे भी खीझ कर कमेण्ट्स करना बन्द कर देंगे।
भाई अशोक जी
वाह! बहुत खूब ! समय तो हम सबको नचाता है। विडम्बना तो यह है कि हम सब समय के हाथों की कठपुतलियाँ हैं और इसके हाथों नाचना हमारी नियति!
सुभाष नीरव
परछाइयों से ही तो प्यार किया है आज तक
इसीलिए तो नचाते रहे हो समय
मुझे मेरी ही धुरी पर लगातार ।
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bahut hi badhiyaa
अशोक आंद्रे जी,बहुत खूब.समय प्यार केलिए परछाईयाँ देता है और प्यास केलिए मृगतृष्णा ,यही तो समय का छल होता है आप जैसा कवि इस को पहचानता है यही पहचान इस कविता को सार्थकता प्रदान करती है .हार्दिक बधाई.
Ashok jee
kavita bahut prabhavshali hai
badhai
tejendra sharma
BHAI ASHOK JEE
ZINDGEE KEE KITNEE BADEE
SACHCHAAEE SE AAPNE RUBRU KARWAAYA
HAI.SEEDHE-SAADE BHAAV SEEDHEE -
SAADEE BHASHA MEIN,WAH KYAA HEE
BAAT HAI!MUBAARAK
Namaste Jijaji,
Kavita is really very good.
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